Saturday 28 April 2012

अनजाना रिश्ता

आज मनं मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का...
कुछ है इस दिल में मुझसे अनजान..
कोई ख़ुशी कोई दुख कुछ तो है मुझसे बेखबर...

केसे धुन्डून आपने आपको,
केसे धुन्डून खुद को...
जो छुपा है लेकिन है जाना पहचाना....
आखिर क्या मांगता है ये दिल?
आखिर क्या चाहता है ये दिल?


जब भी देखूं मासूम से बच्चे को मन लगे शांत होने..
वो प्यारी सी हंसीं वो आँखों में मासूमियत...
वो दुनिया से अनजान...
न लालच न कोई दुख...
न कोई खुइस..
वो नासमझ हसीं....
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का....


जा भी देखूं इन परिंदों को..
मनं लगे शांत होने...
एक ख़ुशी गगन में उड़ने की...
न कोई बंधिश न कोई मजहब...
एक चाह गगन को चूमने की..
एक ऐसे गीत की चाह जो रहे हरदम गुनगुनाने  की...
सबसे बेखबर..
भरोषा अपने आप और अपने सुन्दर पंखों पर...
एक विशवाश जो कभी नही मरता..
एक आशा जो कभी नही मरता..
एक साथ जो सबको साथ रखे...
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का...



जा भी देखूं इन फूलों को..
मनं लगे शांत होने...
पहली किरण के साथ जागना..
खुद महक और सब को मेह्क्काना..
अपनी रंग बिरंगी खुशियाँ फेलाना..
दूसरों की ख़ुशी के लिए खुद आपनो से अलग हो जाना...
अपनी कोई ख़ुशी नही मगर दूसरों की ख़ुशी बन जाना...
हमेशा साथ रहने का यकीं दिलाना...
जेसे.. जेसे आँखों को छु जाना..
आज मन मेरा भी है कुछ करने का..
आज मन मेरा भी है कुछ लिखने का....




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